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कविता

फागुनी शाम

नामवर सिंह


फागुनी शाम
अंगूरी उजास
बतास में जंगली गंध का डूबना

ऐंठती पीर में
दूर, बराह-से
जंगलों के सुनसान का कूँथना।

बेघर बेपरवाह
दो राहियों का
नत शीश
न देखना, न पूछना।

शाल की पँक्तियों वाली
निचाट-सी राह में
घूमना घूमना घूमना।


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