फागुनी शाम अंगूरी उजास बतास में जंगली गंध का डूबना ऐंठती पीर में दूर, बराह-से जंगलों के सुनसान का कूँथना। बेघर बेपरवाह दो राहियों का नत शीश न देखना, न पूछना। शाल की पँक्तियों वाली निचाट-सी राह में घूमना घूमना घूमना।
हिंदी समय में नामवर सिंह की रचनाएँ